Sunday 23 September 2018

माँ


वो जो दूर खड़ी आँखों में आंसू लिए मुस्कुरा रही है। 
उसे बस इस बात की तस्साली है की मैं खुश हूँ। 
उसने अपनी सारी उम्र मेरी ख़ुशी में खुश होके निकाल दिया।   
वो जो दूर खड़ी आँखों में आंसू और होटों पे मुस्कान लिए दुआएं दे रही हैं। 
उसे बस इस बात की तस्सली है की उसकी दुआयें काम कर गयी।  
उसने अपनी सारी उम्र मुझे दुआयें देने में ही निकाल दी। 
वो जो दूर खड़ी आँखों में आंसूं और होटों पे मुस्कान लिए झोला पकड़ के खड़ी है। 
तुम जाके देख लो उसे आज भी तो एक ठन्डे पानी की बोतल और एक बिस्किट का पैकेट मिलेगा।  
उसने अपनी सारी उम्र इस झोले को भरने में ही निकाल दी है। 
अब तुम ही बताओ कोई कैसे मुँह मोड़ सकता है। 
कोई कैसे इन आशाओं को तोड़ सकता है। 
कोई कैसे इतना कठोर हो सकता है की मूड के भी न देखें।  
कोई चिड़िया कैसे उसके आँगन में न चेहके। 
क्या हुआ गर इसने कोई ज़िद पूरी नहीं की तुम्हारी। 
क्या हुआ गर मारा तुम्हे इसने तुम्हारी भलाई क लिए। 
क्या हुआ गर दूर कर दिया खुदसे तुम्हारे सपनो को पंख देने के लिए। 
तुम समझते हो की इसने वो साल बहुत ख़ुशी में जिए है 
तो तुम गलत हो। 
मेरी मनो तो अब भी समय है पलट लो। 
के कही कल देर न हो जाये। 
यह इंसान तुमसे कही दूर हो जाये।  
और तुम हाथ मलते रहना और अपनी किस्मत को कोसते हुए कहना। 
के एक बार तो अपने गले से लगा जा। 
इन आंसुओं को रोकने का तरीका बता जा 
तू एक बार। 
बस एक बार माँ मुझे चुप करने के लिए आजा।  

No comments:

अवसरों की खोज में: एक आत्मविश्वास की कहानी

शहर की बेमिती पलकों में, वहाँ एक आदमी का रूप, बेरोज़गारी के आबा में लिपटा, अकेला दिल की धड़कन में, अवसरों के समुंदर में बहती एक अकेला आत्मा,...