मैं तीन मंज़िल के एक मकान मे रहता हु।
वो बालकनी जहा AC टेंगा हुआ है।
तीसरी मंज़िल पे वही मेरा घर हैं।
मेरा घर एक सरहद का काम करता हैं।
इसके एक ओर गगन चुम्बी इमारते हैं।
मेरा घर एक सरहद का काम करता हैं।
इसके एक ओर गगन चुम्बी इमारते हैं।
इन इमारतों में सैंकड़ो घर है।
इन घरो की खिड़कियों से मैंने किसी को भी।
कभी झांकते हुए नहीं है।
कभी झांकते हुए नहीं है।
शाम ढलते ही मनो रौशनी जो कैद है।
इन्ही खिड़कियों से निकलने की कोशिश करती है।
मैं खुद इसका गवाह हु।
मेरे घर के दूसरी ओर एक बस्ती है।
इन लोगो ने अपने माकन ground floor
तक ही सिमित रखा है।
इन्हे नहीं पता की सरहद के उस ओर क्या है।
यह मुझे मेरे किराये के मकान मे देख
कर सोचते है की यह बहुत अमीर हैं।
यह सब मेरे घर में रौशनी कैद पते हैं
मई खुद इसका गवाह हु।
वो सरहद वाले।
मेरे घर की उम्मीद मे है।
और मै सरहद के उस ओर वाले की।
कभी न कभी हमारे हालात बदलेंगे।
सरहद के उस ओर वाले इस और आएंगे
की नहीं यह तो समय को ही पता है।
पर फ़िलहाल मेरा घर एक सरहद का काम करता हैं।
- साहिल
- साहिल